एक राष्ट्र एक चुनाव: लाभ, हानि और उत्तराखंड समिति की रिपोर्ट की मांग

देश में एक राष्ट्र, एक चुनाव (One Nation One Election) की बहस फिर से जोर पकड़ रही है। उत्तराखंड में इस विषय पर विशेष समिति द्वारा लाभ और हानि की रिपोर्ट मांगी गई है। यह कदम भारत के लोकतांत्रिक तंत्र में एक ऐतिहासिक बदलाव का संकेत हो सकता है। आइए इस मुद्दे को गहराई से समझें।
एक राष्ट्र एक चुनाव क्या है?
एक राष्ट्र एक चुनाव का मतलब है कि पूरे देश में लोकसभा और राज्य विधानसभा चुनाव एक साथ कराए जाएं। वर्तमान में भारत में अलग-अलग समय पर चुनाव होते हैं जिससे समय, संसाधन और सरकारी मशीनरी पर भारी दबाव पड़ता है।
उत्तराखंड समिति की भूमिका और रिपोर्ट की मांग
उत्तराखंड विधानसभा ने इस मुद्दे पर गहन चर्चा के बाद एक विशेष समिति गठित की है, जो केंद्र सरकार की सिफारिश पर एक राष्ट्र, एक चुनाव की संभावनाओं का मूल्यांकन करेगी। समिति को निम्नलिखित बिंदुओं पर रिपोर्ट तैयार करनी है:
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प्रशासनिक प्रभाव
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आर्थिक लागत और बचत
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संवैधानिक संशोधन की आवश्यकता
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राज्य की स्वायत्तता पर प्रभाव
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मतदाता सहभागिता में बदलाव
एक राष्ट्र एक चुनाव के प्रमुख लाभ
1. खर्च में भारी कटौती
हर चुनाव में अरबों रुपये खर्च होते हैं। अगर सभी चुनाव एक साथ कराए जाएं, तो चुनाव आयोग, पुलिस, प्रशासन और मीडिया पर आने वाला खर्च एक बार में ही सीमित हो जाएगा।
2. सरकारी मशीनरी की दक्षता
चुनावों के कारण बार-बार आचार संहिता लागू होती है जिससे विकास कार्य रुक जाते हैं। एक साथ चुनाव होने से यह समस्या समाप्त हो जाएगी और प्रशासन सुचारु रूप से कार्य कर पाएगा।
3. राजनीतिक स्थिरता
लगातार चुनावी माहौल राजनीतिक अस्थिरता को जन्म देता है। एक साथ चुनावों से यह माहौल स्थिर होगा और सरकारें अपने कार्यकाल पर अधिक ध्यान केंद्रित कर सकेंगी।
4. मतदाता जागरूकता और भागीदारी में वृद्धि
एक बड़े आयोजन के रूप में चुनाव होने पर मीडिया कवरेज और जन जागरूकता ज्यादा होगी, जिससे मतदान प्रतिशत में वृद्धि हो सकती है।
एक राष्ट्र एक चुनाव की चुनौतियाँ
1. संवैधानिक जटिलताएं
लोकसभा और विधानसभा दोनों की कार्यावधि अलग-अलग होती है। समय से पहले सरकार गिरने या भंग होने की स्थिति में पूरे देश में दोबारा चुनाव कैसे होंगे — यह एक बड़ी चुनौती है।
2. संघीय ढांचे पर प्रभाव
भारत का संविधान राज्यों को स्वायत्तता देता है। सभी राज्यों को एक साथ चुनाव के लिए मजबूर करना उनके संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन हो सकता है।
3. क्षेत्रीय मुद्दों की अनदेखी
अगर चुनाव एक साथ होंगे तो राष्ट्रीय मुद्दों का बोलबाला रहेगा और स्थानीय समस्याएं व विचारधाराएं हाशिए पर जा सकती हैं।
4. लॉजिस्टिक समस्याएं
भारत जैसे विशाल देश में एक साथ चुनाव कराने के लिए लाखों ईवीएम, पोलिंग बूथ और सुरक्षा बलों की जरूरत होगी, जो वर्तमान संसाधनों से कहीं अधिक है।
राज्यों का रुख और उत्तराखंड की पहल
उत्तराखंड की समिति देश के अन्य राज्यों के अनुभवों और रुख का भी अध्ययन कर रही है। कई राज्य इस पहल के समर्थन में हैं, वहीं कुछ राज्य इसे संघीय ढांचे के खिलाफ मानते हैं। उत्तराखंड में समिति यह सुनिश्चित कर रही है कि राज्य की स्वायत्तता और लोकतांत्रिक प्रक्रिया पर कोई आंच न आए।