वल्मीक ठापर: भारत के वरिष्ठ बाघ संरक्षक और लेखक का निधन, एक युग का अंत

प्रकृति संरक्षण के अग्रदूत वल्मीक ठापर का निधन

प्रख्यात वन्यजीव विशेषज्ञ, लेखक और बाघ संरक्षण के लिए समर्पित वल्मीक ठापर का 71 वर्ष की आयु में दिल्ली में निधन हो गया। उनका जाना केवल भारत के पर्यावरणीय आंदोलन के लिए ही नहीं, बल्कि समस्त प्राकृतिक विरासत के लिए एक अपूरणीय क्षति है। वल्मीक ठापर दशकों तक भारतीय बाघों के संरक्षण और उनके आवास के बचाव के लिए प्रतिबद्ध रहे।

वल्मीक ठापर: एक जीवन, जो बाघों को समर्पित रहा

वल्मीक ठापर का जीवन और करियर बाघों के संरक्षण की लड़ाई में बीता। उन्होंने रणथंभौर राष्ट्रीय उद्यान में वर्षों तक कार्य किया और वहां की बाघों की गतिविधियों पर निगरानी रखी। उनका मानना था कि बाघों को बचाना भारत की सांस्कृतिक और पारिस्थितिक जिम्मेदारी है।

उनकी प्रमुख उपलब्धियों में शामिल हैं:

बाघों की आवाज़: उनका साहित्यिक योगदान

वल्मीक ठापर न केवल एक संरक्षणवादी थे, बल्कि वे एक कुशल लेखक भी थे। उनके लेखन में गहराई, संवेदना और तथ्यात्मकता का सुंदर मिश्रण होता था। उनकी प्रमुख पुस्तकें जैसे “Land of the Tiger”, “Tiger: The Ultimate Guide”, और “My India: Notes from the Jungle” आज भी वन्यजीव प्रेमियों और शोधकर्ताओं के लिए संदर्भ बिंदु हैं।

वल्मीक ठापर और रणथंभौर का अटूट रिश्ता

रणथंभौर राष्ट्रीय उद्यान वल्मीक ठापर का दूसरा घर था। यहीं से उन्होंने बाघों के व्यवहार, प्रजनन और आवास पर अद्वितीय अध्ययन किया। वे वर्षों तक वहां डटे रहे और रणथंभौर को अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाने में उनकी भूमिका अहम रही।

बाघ संरक्षण में उनकी प्रमुख पहलें

श्रद्धांजलि: एक प्रेरणास्त्रोत का जाना

वल्मीक ठापर का निधन उन सभी के लिए एक व्यक्तिगत क्षति है, जो प्रकृति और वन्यजीवों से प्रेम करते हैं। उनकी स्मृति में कई संरक्षक, लेखक, और पर्यावरण प्रेमी सोशल मीडिया और अन्य मंचों पर अपने विचार साझा कर रहे हैं।

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